मौसम जो कुछ कहता है
मौसम परिवर्तन तो हम सभी हर साल देखते रहते हैं, और ये परिवर्तन ही शायद सबसे खुशनुमां होता है। मैं अपनी बात करूँ तो मुझे हर साल एक भावना हमेशा महसूस होती है, वो है गर्मी के बाद बरसात का इंतज़ार और उसके बाद सर्दी का इंतज़ार। गर्मी की जब बहुत मार पड़ती है जब सही नहीं जाती तब बरसात या फिर सर्दी का ख्याल आता है और जब बरसात आये तो पहले तो वो भी अच्छी लगती है फिर हर दिन पानी और जगह जगह किचपिच (गढ़वाली में) कीचड़ पिछड़ ही बोलना ज्यादा ठीक रहेगा और शायद आप भी इसी से अच्छे जुड़ पाए , हो जाती है, उसके बाद थोड़ी धूप और सूखे के लिए सर्दी का इंतज़ार रहता है , जब सारा सारा दिन धूप में बैठे बैठे निकल जाता है और समय का पता ही नहीं चलता और पता चलेगा भी कैसे सुबह जल्दी होती नहीं और रात बहुत जल्दी हो जाती है और सब दुबक कर घर के अंदर चले जाते हैं और या फिर रजाई कम्बल के अंदर घुस जाते है।
ये तो मौसम की मार से दिल बहलाने का तरीका था पर असली वजह इन मौसम में बनने वाला खाना ज्यादा याद आता है। सर्दी में मूंगफली और गुड़, मटर गोबी और आलू की सब्जी , शलजम , गरमा गर्म सूप (ज्यादा पकवान या सामग्रियों की यहां पर चर्चा नहीं की क्योंकि क्या पता मेरी डिक्शनरी में वो पकवान न हो जाप अपने खाये हो)। गर्मी में खीरे का रायता , लोंकी, आइसक्रीम , कोल्ड ड्रिंक, और भी बहुत कुछ।
बसंत का अपना अंदाज
चलो ये तो बात हुयी हमारे कुछ महत्वपूर्ण मौसम पर मैंने शुरुवात में बात परिवर्तन की की। और या शायद उन मौसम से ज्यादा सुखद होते हैं । आपने ये तो बहुत बार सुना होगा की लोग अक्सर अपनी उम्र को बताने के लिए इस अभिव्यक्ति को शामिल करते हैं अभी तक अपनी जीवन में इतने बसंत देख चूका हूँ / चुकी हूँ। कभी ये कहते सुना है की मैंने जीवन की इतनी गर्मी देखी है या फिर बरसात या या सर्दी देखी हैं। हाँ में बस अब आने वाले परिवर्तन की बात कर रही हूँ जो हमेशा से मेरा पसंदीदा मौसम रहा है बसंत। और इसका इंतज़ार मुझे हमेशा से रहा है खाने की वजह से नहीं इसकी अदाओं के कारण।
और मौसम हमेशा एक ही ढीढ अंदाज़ में आता है पर बसंत अपने साथ लचीलापन , खूबसूरती, सकारात्मकता लेके आता है, भँवरे अपने अंदाज में गुनगुनाते हैं, कोयल की कूक मन को अंदर तक छूती है, नयी कोपलें पेड़ों पौधों को नयी पहचान देते है या ये कहूं सृष्टि अपने को सवारने लगती है, अलग अलग रंगों से सजती है, और उसके आगमन में सभी गीत गाते हैं सूरज की हर किरण एक नयी उम्मीद के साथ आती है मन महकता उठता है, मैं खुद को भाग्यशाली समझती हूँ की मैं यह सब देख सकती हूँ सुन सकती हूँ मेरे आस पास ये सब होता है।
यह मौसम संतुलन बनाना सिखाता है। न ज्यादा गर्मी न ज्यादा सर्दी और कभी कभी बारिश। हर मौसम को एक सामान देखती है। और इसकी शुरुवात माँ सरस्वती के पूजन के साथ होती है। ज्ञान जितना बाँट सको और बटोर सको तो करो किन्तु एक सीमा मे। किसी की भी बहुलता घातक हो सकती है इसीलिए शायद बसंत ही इसके साथ शुरू होता है हर किसी को साथ में लेकर और संतुलन के साथ चलना और कसी तरह चलना है ये मौसम बेहतरीन तरीके से बताती है।
रही बात इसकी सुंदरता जाहिर करने के लिए फूल, पौधे , पेड़, पंछी , कोयल, घुघूती, अपने मखमली पीले रंग से कायल करती फ्योंली जो दूर से ही दिखती नज़र आती है , बुरांस, सरसों और अन्य फूलों और कोंपलों पर मंडराते भँवरे , अपनी लाली फैलता बुरांस , आड़ू , चुलु , गुरियल, के टहनियों पे अपनी छटा बिखेरती वो सफ़ेद और हलके गुलाबी रंग के छोटे छोटे फूल , आम के पेड़ों पर वो गाढ़े हरे रंग के ऊपर मेहरून रंग के पत्ते जो धीरे धीरे अपना होना बताते है।