खंडहर घर का दर्द

खंडहर घर का दर्द

कुछ साल पहले तक हम दूसरी जगह रहते थे। तो वहां हमारे घर के सामने एक पुराना पीले रंग का बड़ा सा घर था जिसमें कई साल से कोई नहीं रहा , पहले कभी कोई रहा करते थे पर फिर शायद से जो उसके मालिक थे वो विदेश चले गए और घर में कोई नहीं रहा। तो उस घर को सब भूतिया घर भी कहते थे तो फिर कभी किसी की हिम्मत नहीं हुई की कोई कभी उस घर में जा सके।

और मजे की बात ये थी की वो घर एक बस्ती के बीच में था। और बस नाम के कारण ही बदनाम था लोगों से सुना की वहां कुछ समय पहले कुछ बच्चे किराये में रहते थे और किसी बच्चे का रिजल्ट खराब आने से उसने वहां आत्महत्या कर दी थी अब ये कितना सच था और कितना झूठ ये में नहीं जानती।

तो फिर हमने उस घर को यूँ ही देखा। तो बस एक दिन उसी के बारे में सोचते हुए मैंने एक कविता उस घर के लिए लिखी

तो लीजिये पेश है मेरी पहली कविता

शीर्षक – खंडहर घर का दर्द

आज सामने वाले घर को देखा
लगा की मानो की वह मुझसे कुछ कह रहा हो
उसने कहा- जिस दिन मैं बन रहा था
बड़े शान से खड़ा हो रहा था

घरवाले मुझे बार बार देखने आते
कास्तकार मेरे खिडक़ी दरवाजे लगते
कलाकार मिस्त्री मुझे सजाते
लाल, पीले , नारंगी , नीले रंगो से

देखते ही देखते ही
मैं एक सुन्दर मकान बनकर तैयार हो गया
मुझमे रहने वालों ने मुझे घर बना दिया
वे बड़े शान से मुझे निहारते

बच्चे खिलखिलाते और मुझे जीवन देते
उनका सीढ़ियों में चढ़ना उतरना
मेरी दीवारों पे उनकी पेंसिल का चलना
नए नए चित्रों से मुझे भरना

धीरे धीरे समय बीतता गया
बच्चे बड़े हो गए और
एक दिन मुझे छोड़कर चले गए
मैं खाली हो गया

अब कोई न खेलता न बोलता
बस सन्नाटा ही चलता फिरता
साल दर साल बिताते गए
बारिश हुई धुप हुई बर्फ गिरी
मैं इंतज़ार करता रहा
और आज तक कर रहा हूँ

मेरे रंग उतरने लगा है
मुझमें लोगों के अलावा
मकड़ी , कबूतर और चूहों का निवास हो गया
अब तो बाहर वाले भी कहने भी लगे हैं
की मुझमें भूतों का डेरा हो गया है

मेरी और आने से लोग डरते हैं
जगह जगह से पानी रिसने लगा है
मैं टूटने लगा हूँ
कभी यहां से तो कभी वहां से
मैं बदसूरत हो गया हूँ

अब मेरा नामकरण हो गया है – खंडहर
कई साल बीत गए कोई नहीं आया
और मैं इंतज़ार करता रह गया

5 thoughts on “खंडहर घर का दर्द

  1. बहुत ही सुंदर और भावपूर्ण रचना।✨
    यह केवल एक इमारत की कहानी नहीं, बल्कि जीवन, यादों, समय और विरक्ति का प्रतीक है।🏡🕰️💭👏

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