शादी या एक मायाजाल , उम्मीदों का पिटारा

ज़िन्दगी के कुछ ऐसे घटनाक्रम होते हैं जिनसे आप कभी भाग नहीं सकते हो , जिसके लिए आपको कभी न कभी सहमति तो देनी ही पड़ती है , कभी परिवार के बारे में सोच के , कभी दिल के हाथों मजबूर होके, कभी ये सोच के की सभी तो ये कर रहे हैं तो में भी क्यों न कर लु, और कई ऐसे पहलु हैं जिन्हे सोच के , देख के हम सहमत हो जाते हैं और हाँ कर देते है।

वैसे तो ऐसी बहुत सारी बातें जिनमें ये सब बातें लागू होती लेकिन आज में बात सबसे गरमागरम मुद्दे की बात करुँगी वो है शादी , ब्याह , परिणय बंधन।
जी हाँ ये फिलहाल के लिए ऐसा मुद्दा है जिससे हर मेरी उम्र का व्यक्ति घिरा होता है। आपके 25 पार करते ही , ये शब्द आपको हर दूसरे दिन सुनाई जरूर देगा। मुझे ऐसा लगता है कुंवारे लोगों को लोग सूंघ के निकल लेते हैं।

और ये डायलाग भी अकसर सुनाने को मिल जाता है तुम्हरी उम्र में तो हमारे तीन तीन बच्चे हो गए थे सारी घर की जिम्मेदारियां संभाल रहे थे और तुम , तुमसे अपने आप की जिम्मेदारी संभाली नहीं जाती है।

आप बड़े हो गए हो आपको घर के काम आ जाने चाहिए , अब आपको जिम्मेदारियों का अहसास हो जाना चाहिए , सही उम्र हो गयी है आपको शादी कर लेनी चाहिए। हर कोई न जाने कहाँ कहाँ से अपने रिश्तेदारों के बच्चों को खोज खोज के लाएंगे , जो कुंडली अभी तक पूजाघर के किसी कोने में रखी हुयी थी अब मोबाइल फ़ोन के वाट्सएप्प पे आ जाती है। पहले तो पंडितों से कुंडलियां जुड़वाते हैं घर वाले और कुछ टाइम बाद खुद ही पंडित बनके कुंडली देखने लग जाते है।
वैसे कितने वयस्क कुंवारे ऐसे होंगे जिनसे ये पूछा गया होगा की आपको कैसी लड़की चाहिए या लड़का चाहिए। बस सब अपने बच्चों को उनकी यूएसपी के साथ मार्किट में लांच करते हैं , हमारी लड़की में ये गुण हैं , हमारा लड़का इतना कमाता है, कोई ऐब नहीं है , सारे काम अच्छे से करना आता है और भी बहुत कुछ। और ये कितना सच होता है और कितना झूट सब शादी के बाद ही पता चलता है।

क्या होती है ये शादी , दो लोगों का या दो परिवारों का एक रिश्ते में बंधना, जिसमें आपका स्टेटस बदल जाता है , आप किसी की पत्नी , किसी का पति , बहु , दामाद, भाभी , जीजा , मामी, मौसा , सब बन जाते हो , इन सबके साथ आने वाली जिम्मेदारियों और लोगों से घिर जाते हो , जहां आप खुद की जिम्मेदारी अच्छे से नहीं ले पाते थे वहां ये सब हो जाते है। शादी के फायदे हैं या नुकसान हैं ये तो में ज्यादा अच्छे से नहीं बता सकती पर शादी एक मायाजाल है ये कह सकती हूँ।

कुछ लोग अपने मनचाहे वयक्ति से शादी करते हैं, कुछ अपने घरवालों के मनचाहे वयक्ति से, कुछ मजबूरी में आके, कुछ खुद को खतरों का खिलाड़ी समझ कर। वैसे मार्किट में एक उद्धरण ये भी चल रहा है की लोग कहते हैं जोड़ियों को भगवान बनाता है पर किस आधार पर , कुंडलियों के जुड़ने पर, घरवालों को पसंद आने पर ,जात पात , धर्म ये सब देख कर और आपको भी वो पसंद आये इसकी प्रायिकता कितनी होगी नहीं पता , ऐसी बनती है जोड़ियां? या तो धरती वाले ही खुद को ही भगवान् समझने लगते है या उनका दूत। तभी ये उद्धरण सही हो सकता है वरना नहीं।

होता तो यूँ है जो आपको पसंद आता है उससे कुंडली नहीं जुड़ती या वो घरवालों को पसंद नहीं आता , बहुत कम है जिसमें सरलता से सब कुछ हो जाये , आपकी कुंडलियों को भी नार्मल होना होता है , कोई मांगलिक, किसी में सास का सुख नहीं , किसी में कोई दोष , किसी के गण अलग अलग हो तो उनमे मनमुटाव और लड़ाई अत्यधिक होने की आशंका और भी कई।

और ये आर्टिकल लिखने की महत्वपूर्ण लाइन जिसने मुझे ये लिखने पर मजबूर किया , की आजकल जहां देखो सब लड़कियां ढूंढ रहे है अपने लड़कों के लिए और उसमें मुश्किल हो रही है क्यों? पहले तो सरलता से मिल जाती थी लड़कियां पर अब इतनी जदोजहत क्यों।

तब दिमाग में ये ख्याल आया की जदोजहत इसलिए कि पहले लड़कियां शादी को ही अपनी किस्मत समझ के ढल जाती थी , अपने को अपने परिवार के लिए समर्पित कर देती थी , और उसमें लड़कों को ज्यादा कुछ नहीं करना पड़ता था , उन्हें कभी अपना घर छोड़के नहीं जाना होता , घर सँभालने के लिए एक और सदस्य आ जाता है , पर जो आता है उसका भी तो परिवार है जिसकी वो सदस्य है , जिसे छोड़कर वो आयी है , जिसकी जिम्मेदारी लेने का कर्तव्य उसका भी है , ये नहीं सोचते थे और लड़कियां भी नहीं सोचती होगी।

पर अब ऐसा नहीं है बदलाव लड़कों में तो नहीं पर लड़कियों में जरूर आया है , वो शादी को ही अपनी किस्मत नहीं मानती है , अच्छा पति मिलेगा तो ज़िन्दगी संवरेगी। नहीं अब वो खुद अपने को सँवार सकती है , शादी जरुरी है पर शादी ही जरुरी है ये नहीं मानती , खुद को खोजना, आजाद होना , दूसरों का कुछ बनने से पहले खुद की कहानी लिखना ये चाहती है , शायद यही वजह है की लड़कियां नहीं मिल रही है।

पर क्या शादी सच में इस आधार में होनी चाहिए क्या ? उसके लिए जो ज्यादा जरुरी है जैसे प्यार , सम्मान, समर्पण , साझेदारी ये सब ज्यादा जरुरी या कुंडली। आप कभी किसी को पसंद करने लगे हो तो दिमाग को सबसे पहले ये बताया होगा की ये पंडित है ये ठीक है इसके प्यार में पड़ना सुरक्षित है , भविष्या में शादी करनी हो तो ज्यादा मनाना नहीं पड़ेगा ऐसा होता है क्या ? या फिर उसको मन चाहता है या चाहने लगता है जिससे आपका मन मिलता हो , विचार मिलता हो, एक दूसरे को समझने की कोशिश करता है , एक दूसरे की परवाह करता हो।
और कितनी बार ये सब देखते हुए भी उस रिश्ते को बढ़ने नहीं दिया क्योंकि वो आपकी जात विरादरी का नहीं था और आपने अपना रास्ता ही मोड़ दिया और उसे बस दोस्ती तक ही सिमित रख दिया।

आजकल हर किसी को देखो तो बस यही पूछता है की शादी कब करेगी , नहीं तो मेरे लिए कोई खोज दे , इसके एक और नया जब आपकी कुंडली किसी से जुड़ न रही हो तब बोलना की खुद की कोई खोजी रहती तो हमें इतनी मेहनत न करनी होती। खोजते कैसे , जब लड़की पटाने की , गर्लफ्रेंड बॉयफ्रेंड बनाने की उम्र होती है तो उस समय यहा डंडा किया होता की अगर इधर उधर नजर घुमाई , फालतू चक्करों में पड़े तो टाँगे टूट जाएँगी।

तो तब ये सब किया नहीं , जब कोई पसंद आता तब फीलिंग्स को आगे बढ़ने नहीं दिया और अब ऐसे कैसे कोई पसंद आता नहीं तो कैसे ढूंढ ले किसी को। मेरा एक दोस्त है वो इतना पसन्द करता है इस शब्द को , केमिस्ट्री में वो पीएचडी पूरी करे न करे शादी में जरूर कर दी होगी , वो पुरे चार्ट , डाटा के साथ आपको शादी के बारे में बता सकता है फायदे , नुकसान सब कुछ।

तो फिलहाल के आज का बस इतना ही, वरना ये टॉपिक ऐसा है जिसकी बात अगर छेड़ी गयी तो ढंग से छिड़ जाएगी , और फिर शादी और भी दुश्मन लगने लगेगी मुझे।

सच कहूं तो आजकल मेरे लिए शादी = बर्बादी है , अगर कभी मैंने शादी कर ली यही सोचूंगी थोड़ी बर्बाद तो हूँ ही शादी करके और बर्बाद हो जाती हूँ।

 

6 thoughts on “शादी या एक मायाजाल , उम्मीदों का पिटारा

  1. Really good article ❤️ Gave a fresh perspective on marriage and today’s youth. Everyone will relate to it in some way 👏

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