लिखना जरूरी होता है

लिखना जरूरी होता है, कितना मानते है लोग इसको। क्या महसूस करते हो आप सभी जब भी आप कुछ लिखते हो, मन में उभर रहे भावों को, आपके चिंतन के समय दखल दे रही अनकहे कथनों को, जिन्हें किसी के सामने परोसने के लिए , सरलता से ,सही शब्दों के साथ कहने के लिए आपको दो बार सोचना होता है और लिखते समय उनका कागज पे उतरना आपको विश्वास दिलाता है कि हां आपका भी अस्तित्व है , आपकी भी कुछ आजमाइशें हैं, शिकायतें है, खुशियां हैं, दुख है, और उन्हें लिखने के बाद , शब्दों के रूप में शक्ल देने के बाद उन्हें भी जीवन मिल जाता है और आप भी एक दलदल से बाहर आ जाते हैं।

कभी कोशिश करके देखी है क्या आपने , कभी मन में उठ रही कश्मकश को कागज पर लिखने की, हां पहले थोड़ा अजीब लगता है, बहुत सोचना पड़ता है कि क्यों आपने ये कलम उठाई है और क्यों आप उस पन्ने को निहार रहे हैं , शब्द खोजने पड़ते हैं, थोड़ी कलम को कोशिश करनी होती और थोड़ा आपको ओर थोड़ा उस पन्ने को जो आपका किस्से को, आपके मन को खुद में समेटने को तैयार होता है।

और जब वह काम पूरा हो जाता तब कितना हल्का महसूस होता है, और यह आप तभी समझ पाएंगे जब आप लिखेंगे।

आजकल कोई कुछ लिखना ही नहीं चाहता है, उस कलम के साथ कोई प्रयोग ही नहीं करना चाहता है, खुद के अन्दर क्या छिपा है किसी के साथ बांटना ही नहीं चाहता है। जब खुद से खुद का मन नहीं बांटोगे तो कैसे समझ पाओगे कि क्या चाहते हो, क्या कर सकते हो, और कितना खुद के अन्दर झांक सकते हो, क्या है आप में, किस कार्य के लिए बने हो, कौनसा कौशल आपके के अन्दर है कैसे पता कर पाओगे?

हर कोई बस खुद के लिए समय ही मांगता रह जाता है पर कोई उस समय को खुद के लिए खर्च ही नहीं करना चाहता है।

हर कोई अपने की मन को कभी न कभी किसी से बांटना जरूर चाहता होगा, कभी कोई साथी के रूप में पाकर उससे अपना मन बांट लेता तो कभी कभी खुद से, ओर कभी कुछ न मिले तो लिखकर उन बातों को कह दो। इससे और कुछ नहीं तो आपका हल्का फुल्का जो अवसाद होगा वो तो कम होगा। चाहे वो गद्य के रूप में हो पद्य के रूप में।

पहले जमाने में लोगों ने अपनी अभिव्यक्ति को कागज में उकेरा, उन्हें अपने अनकहे भावों से, प्रेम के रंग से, परवाह के ढंग से किसी दूसरे के लिए भी सजाया। और जो हमेशा के लिए उनके साथ रहा चिठ्ठियों के रूप में। पुराना दौर चाहे जैसा भी रहा हो , पर मेरे हिसाब से वो चिठ्ठियां ही उस दौर का सबसे खूबसूरत पहलू रहा होगा।

लिखकर आप अपनी अभिव्यक्तियों को जितने सहज और खूबसूरत तरीके से बयान कर सकते हो , उतना आप कभी कहकर नहीं कर सकते। वो कुछ लोग ही होंगे जिन्हें बोलना खूब तरीके से आता है और जो बातें करना जानते है जिनको शब्दों में अच्छी पकड़ है।

हां ये है, पहले पहले आपको खुद को मजबूर करना पड़ेगा लिखने के लिए, और जब आदत हो जाए तो वो लिखने की आदत हो आपको मजबूर करेगी कि आप लिखो।

वैसे माना जाये तो लिखना हमेशा से ही चेतना से भरा हुआ , सोचा समझा हुआ होता है , चाहे वो कुछ भी क्यों न हो , घर के राशन के लिए बनाई गयी सूचि, दिनभर में करने वाले कामों की सूची, किसी की याद में लिखी गयी चिट्ठी , रात भर हलचल करते हुए शब्दों से बनी हुयी कोई कविता या कुछ भी तो महत्वा रखती हो , याद से भरी हो , और दूर तक साथ तक देती हो , सब कुछ लिखने पर ही निर्भर करती है। मैं लिखती हु , काफी लिखा भी है , और लिखने को कहती भी हूँ , क्योंकि कुछ कुछ बातें लिखके ही ज्यादा अच्छी तरह से व्यक्त हो पाती हैं।

2 thoughts on “लिखना जरूरी होता है

  1. बीते हुए समय की सबसे ख़ूबसूरत चीज़ों में से एक था—भावनाओं का चिट्ठियों में उकेरा जाना। वे चिट्ठियाँ कई किलोमीटरों का सफ़र तय करके उन भावनाओं को साथ लाती थीं, और कभी-कभी तो इतना समय लग जाता था कि व्यक्ति खुद अपनी चिट्ठी से पहले पहुँच जाता था। फिर भी वह चिट्ठी अपना मर्म नहीं खोती थी, और वर्षों बाद पढ़े जाने पर भी कुछ पलों में ही बरसों पीछे ले जाती थी…

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