अपेक्षाओं से घिरते जा रहे हम

कितनी बार ऐसा होता है की एक समय पे आप बिलकुल निश्चिंत रहते हैं की आपको क्या करना है , आने वाले समय में क्या क्या हो सकता है ऐसा नहीं होगा तो वैसा होगा पर कुछ न कुछ तो हो ही जायेगा ,और कुछ न कुछ होने के बड़े मोके है, जो आपको विश्वास दिला देता है ।

पर कुछ समय के बाद ऐसा वैसा कुछ भी नहीं होता है और आप फिर से उसी बारम्बारता में घुमते जाते हो और जैसा समय अभी तक गुजरते आ रहे थे वैसे ही अब भी गुजर रहे हो।
कुछ मौके आते हैं जिनके लिए आप मेहनत करते हो , हर वो कोशिश करते हो जिससे आपका काम हो जाये , जिसे सोच सोच के आप उत्साह के साथ साथ उत्कंठा (anxiety ) से भी भर जाते हो, अगर वो मौका आपको मिलता है तो कैसा होगा , किस तरह के बदलाव आपके जीवन में होंगे , और नहीं होता है तो उससे आप कैसे निपटेंगे , वो न पाने का अनुभव कैसा होगा ।
हाल ही में मैंने भी कुछ ऐसा ही महसूस किया था , एक मौका आया था जिसके लिए मैंने मेहनत की थी , जो काम कभी नहीं किया था पहली बार उसे भी किया , और ये सब करने के बाद मुझे चुने जाने के बहुत उच्च संभावनाएं थी , जिसे लेकर पहली बार मुझे इतनी आशा थी , रात को सपनों में वही सब आता , अगर मौका मिलता है तो कैसा होगा , दिन में उसी के ख्याल , तीन चार दिन के लिए मैंने उसके बारे में इतना सोचा , जो में सोचना नहीं चाहती थी , पर इस बात पर इस ख्याल  पर मेरा बस नहीं चला ,और इतना सोचने लगी की मुझे घबराहट सी होने लगी, तब मेरी दोस्त से बातचीत करके , उसका मेरा मन भटकाने की कोशिश ने मुझे इससे बाहर निकला।

हाँ थी तो ये छोटी सी बात , पर मेरे लिए बड़ी थी , पहली बार थी और उसका न होना निराशाजनक था , पर उसके बाद में क्या ही कर सकती थी , हाँ पर कोशिश की थी , शायद उसका मेरे लिए न होना ही लिखा था।

पहली बार जब भी कुछ होता है या आप करते हो , वो संभवतः ख़ास होता है , बैचेनी से भरा होता है , उत्साहवर्धक होता है , यादगार होता है , तो वो पहली बार करने के लिए हिम्मत मांगता है , चाहे वो पहली नौकरी हो, पहला प्यार हो, नयी ज़िन्दगी शुरू करने का निर्णय हो , नौकरी से इस्तीफा देना हो सब कुछ जब पहली बार होता है तो बहुत से सवालों के साथ शुरू होता है।

मैंने भी नौकरी से इस्तीफा देने का निर्णय लिया है , ढाई साल बहुत हैं किसी फर्म के साथ जुड़े रहने के लिए , पर जब भी कोई पूछता हैं की तुम क्यों छोड़ रही हो, कहीं दूसरी जगह नौकरी लग गयी है , या किसी के साथ झड़प हो गयी है , शादी होने वाली है , और भी बहुत कुछ।

और अभी मैं उस दशा में हूँ की किसी को कोई उत्तर ही नहीं दे पा रही हूँ, और ज्यादा सवालों के जवाब में एक मुस्कराहट बस। और जवाब दूँ भी तो क्या दूँ, हैं कुछ वजह , पर वो बताना नहीं चाहती हूँ, पर बात ये है की आगे मैं क्या करने वाली हूँ ये नहीं जानती हूँ।

सोचा है की ये करुँगी वो करुँगी , पर कुछ समय बाद खुद में शक होने लग जाता है की कर पाऊँगी भी की नहीं , कोई दूसरी नौकरी का फिलहाल मेरे पास कोई विकल्प नहीं है , एक जगह आवेदन दिया है पर वहां होगा की नहीं , नहीं जानती।
तब सोचती हूँ की कर क्या रही हूँ मैं, और ऐसा सिर्फ मेरे साथ हो रहा या किसी और के साथ भी होता है। और इसका उपाय क्या है?

क्या अपेक्षाएं करना इतना सरल होता है या इतना कठिन। पूरी हो जाए तो सरल हो न हो पाए तो बेमतलब की या कठिन। 

तो इसे पढ़ने के बाद किसी के मन में कोई विचार हो, ख्याल हो, किस्सा हो या उपाय, तो जरूर साझा कीजियेगा मेरे साथ।

मैं आपकी वही पुरानी अभिलाषा।

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