- तो आज का टॉपिक है सोचना।
आप किस बारे में सोच रहे हो, क्या सोच रहे हो, क्यों सोच रहे हो ,किसलिए सोच रहे हो, और इतना सोच के हो क्या रहा है, और ये सोच को सोच के ही आपके कितने फैसले बदले गए हैं, और आपने ही बदले है। और क्यों बदले? ये सोच के ऐसे ही सारी ज़िन्दगी कट जाती है।
हमें हर चीज़ के बारे में क्यों सोचना है? वैसे आप सोचते किसके बारे में हो ज्यादातर , सबसे पहले उन बातों के बारे में जो आप करना चाहते हो पर आप कर नहीं पाते हो, और अगर कर लिया तो उसके बारे में सोच सोच के गिल्ट में जाते रहते हो, घरवालों का सोच के , उनकी बातों का सोच के, करियर के बारे में सोचते हुए, अगर बड़े हो गए हो तो शादी के बारे में सोचना आपका, आपके घरवालों का , आपके पड़ोसियों का , रिश्तेदारों का जरुरी हो जाता है, आप इसके बारे में सोचना भी नहीं चाहते हो फिर भी सोचना पड़ जाता है.
आपका दिमाग खाली कब है, इसके लिए भी आपको सोचना पड़ जायेगा।
आज मेरे एक दोस्त ने कहा की केवल दो दिन के लिए आप किसी के बारे में मत सोचना बस जो हो रहा है उसको जीना। उसका कहना था की मुझे केवल दो दिन के लिए कुछ नहीं करना है, किसी के बारे में सोचना तो बिलकुल नहीं है बस वर्तमान में जीना है।
कितना सा तो काम है कुछ न करना , पर इसके बारे में आप सोच भी नहीं सकते हो। ऐसे ख्याल भी आपके दिमाग में नहीं आ सकते है। उसमें भी आप सोचने लग जाओगे की अगर में कुछ नहीं करुँगी, तो करुँगी क्या।
जैसे की आस पास जो भी हो रहा है उसको देखना , एक मक्खी भी उड़ रही है तो उसे गौर से देखना , बस उन छोटी छोटी बातों में ध्यान देना जिन पर अभी तक ध्यान नहीं दिया। ये सब थेरेपी के अंदर आता है लोग इसको करने के लिए कॉउंसलिंग तक लेते हैं, की कैसे वो अपने स्ट्रेस से पीछा छुड़ाए। और अगर आपने ये दो घंटे तक भी ये करके दिखा दिया वो भी एक बहुत बड़ी बात होगी।
आजकल हम जिस माहौल में जी रहे हैं, जो हमारे आस पास है उसमें आप ऐसा कर ही नहीं सकते हो, वो आप को करने नहीं देगी। अगर आप ये सोच रहे हैं की उन दो घंटो में आप सो जाओगे तो गारंटी है की आप उस समय भी कुछ न कुछ सोच रहे होंगे।
Why we think too much.
कितने तो ऐसे काम है जो आप करना चाहते हैं, पर उसका क्या अंजाम होगा, घरवाले क्या कहेंगे इन सब के बारे में सोच के ही आप उस काम को करने का विचार छोड़ देते हो, और कब तक ऐसा करना होगा, इसी सोच के वजह से कभी कुछ नया नहीं किया , नया अनुभव नहीं लिया , नया किस्सा नहीं बनाया , और अपनी कहानी को यूँ ही अधूरा और बेस्वाद छोड़ दिया। क्यों?
कभी कभी लगता है ज्यादा कभी सोचना ही नहीं चाहिए , जो एक बार करने का फैसला ले लिया तो उसे कर ही लो , पता तो चले उसके बाद हुआ क्या।
मैंने हाल ही में एक फिल्म देखी। खुदा गवाह नाम की, बड़ी अच्छी फिल्म है तो उसमें अमिताभ बच्चन का एक संवाद है की किसी फैसले के बारे में ज्यादा नहीं सोचना चाहिए , ज्यादा सोच उस फैसले को कमज़ोर बना देती है। जो बस मेरे दिमाग में घूम रही है अब तक। और बात सही भी है।
प्रवाह के साथ बहना सिखीये , चलना सिखीये( Lets go with the flow)। पर कैसे सीखेंगे। वैसे इतना सोच के हो क्या रहा है, घबराहट , या उसी सोच के ऊपर दूसरी सोच के बारे में सोच रहे हो , दिमाग में हर समय कुछ न कुछ फालतू का चला ही आ रहा है , दिमाग को खाली ही नहीं कर पा रहे है।
वैसे ये तो मरते दम तक होने वाला है, पर हाँ अब कुछ चीज़ों के बारे दोबारा न सोचू, कम से कम सोचना ये करने की कोशिश कर सकती हूं मैं भी और आप भी।
Leave a comment if you find it thinkable. Don’t think too much , as a i say just go with the flow.
Let’s meet with new expression of thought.
Abhilasha Thapliyal.